”’समिति रजिस्ट्रीकरण अधिनियम, १८६०”’ (Societies Registration Act, 1860) [[भारत]] का एक [[अधिनियम]] है जो उन संस्थाओं की रजिस्ट्री करता है जो प्रायः समाज के हित के लिए कार्य करतीं हैं, जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार आदि के क्षेत्र में कार्यरत समितियाँ। सोसाइटीज रजिस्ट्रेशन एक्ट, 1860 एक केन्द्रीय अधिनियम है तथा इस एक्ट के अन्तर्गत विभिन्न प्रकार की चैरिटेबल एवं अव्यवसायिक संस्थाएं पंजीकृत की जाती हैं। यह एक्ट पूरे भारतवर्ष में समान रूप से लागू है तथा इसमें समय-समय पर राज्यों द्वारा अपनी आवश्यकतानुसार संशोधन आदि किया जाता है। प्रत्येक राज्य की नियमावली भी अलग-अलग है।
इस अधिनियम के अन्तर्गत वैज्ञानिक शैक्षणिक, धर्मार्थ एवं कल्याणार्थ हेतु निर्मित समितियों के पंजीकरण एवं प्रत्येक पांच वर्ष बाद पंजीकृत समितियों के नवीनीकरण का कार्य किया जाता है। संस्थाओं की प्रबन्ध समिति की वार्षिक सूची के पंजीकरण तथा संस्थाओं द्वारा अपने पंजीकृत उद्देश्यों या पंजीकृत विधान में आवश्यकतानुसार परिवर्तन, नाम में परिवर्तन की कार्यवाही प्रस्तुत किये जाने पर सोसाइटी रजिस्ट्रेशन ऐक्ट के सुसंगत नियमों के अन्तर्गत पंजीकरण का कार्य किया जाता है। संस्थाओं के द्वारा वित्तीय अनियमितताओं की शिकायत प्राप्त होने पर संस्था के लेखों की जांच एवं संस्था के कार्यकलापों का निरीक्षण भी किया जाता है। अधिनियम की धारा 4 (1) के परन्तुक के अन्तर्गत यदि चुनावोपरान्त पिछली कमेटी के पदाधिकारी या कार्यकारिणी सदस्य आपत्ति प्रस्तुत करते हैं तो रजिस्ट्रार द्वारा आपत्तियां आमन्त्रित करके उस पर सो0रजि0ऐक्ट के सुसंगत नियमों के अन्तर्गत आदेश पारित किये जाते हैं।
यदि संस्था की प्रबन्ध समिति में चुनाव विवाद विद्यमान है तो अधिनियम की धारा-25(1) के अन्तर्गत प्रकरण विहित प्राधिकारी को सन्दर्भित किये जाने की व्यवस्था है। यदि विहित प्राधिकारी द्वारा संस्था के चुनावों को निरस्त किया जाता है अथवा रजिस्ट्रार को यह समाधान हो जाय कि किसी संस्था के चुनाव संस्था के पंजीकृत विधान के अनुसार समय से नहीं हुए है तथा प्रबन्ध समिति कालातीत हो चुकी है तो रजिस्ट्रार संस्था की प्रबन्ध समिति के चुनाव अपनी देख-रेख में सम्पन्न कराते है। संस्था द्वारा यदि पंजीकरण/नवीनीकरण प्रमाण-पत्र गलत तथ्यों को प्रस्तुत करके फर्जी प्रपत्रों के आधार पर प्राप्त किया जाता है, अथवा संस्था के क्रियाकलाप जन विरोधी है, तो ऐसी दशा में रजिस्ट्रार को अधिनियम की धारा 12 डी (1) के अन्तर्गत पंजीकरण/नवीनीकरण प्रमाण-पत्र के निरस्त किये जाने के आदेश संस्था को सुनवाई का पर्याप्त अवसर प्रदान करने के पश्चात पारित करने का अधिकार होता है।